अाज का इतिहास गवाह है
आज का इतिहास गवाह है- पी.एम.जैन सामाजिक स्तर पर जब से अनावश्यक दुकान रूपी मठ-मन्दिरों की परम्परा पनपने लगी तब से समाजें आपसी प्रेम - सद्भाव छोड़कर पतन की ओर अधिक अग्रसर होने लगी है| एक ही कालोनी या बस्तियों के बीच में एक ही आम्नायों के चार-चार मंदिरों का विराजित होना समाज के आपसी मतभेद या अंहकार को दर्शाता है! जिसका फायदा तथाकथित कुछ साधुसंत और कुछ अधकचरे धनाढय व्यक्ति ही- "फूट डालो और राज करो" वाली कूटनीति के माध्यम से भरपूर उठाते हैं | सामाजिक व धार्मिक मतभेद फैलाने वाले कुछ कूटनीतिज्ञों का इतिहास खंगोला जाये तो अधिकाँश तौर पर यह मानसिक और वैचारिक तौर पर शुद्ध मुनाफाखोर कंगले ही निकालेंगे जो कि धर्म की आड़ में और आस्था के नाम पर समाज को लूटकर अपनी इच्छाओं को तुष्ट-पुष्ट करते हैं | बन्धुओं सूक्ष्मदर्शी होकर दृष्टि दौड़ाई जायें तो समाज में कुछ ऐसे भी कठठुल्लें मौजूद हैं जिन्होंने आर्थिक तंगी से तंग आकर मोक्षमार्ग की ओर कदम बढ़ाये लेकिन संसारिक "माया जी" के दर्शन करते ही धर्म मार्ग से फिसल गये! मायाचारी करके भाग्यवश माया प्राप्ति के उपराँत अब - "नंगा कूँ मिल गई पीतर, बाहर धरे कि भीतर" वाली कहावत को तूर दे रख्खा है! जिसके अन्तर्गत उन्होंने सामाजिक और धार्मिक स्तर पर चारों तरफ से अनीति फैला रखी है | कृपया ऐसे भ्रष्ट भड़भूँजों से समाज सावधान रहे और अपने पूर्वजों के प्राचीन इतिहास को पुन: दौहराते हुए आपसी प्रेमभाव व सद्भाव को कायम रखें क्योंकि आज के दौर में कुछ ही विरला समाजें हैं जो अमीर-गरीब का भेदभाव त्यागकर अपने समस्त साधर्मी बन्धुओं को स्वयं के ह्रदयावरण करती हैं | बन्धुओं विचार कीजिए कि आज वर्तमान में समाज के मध्य विराजित मंदिरों में समाज द्वारा कितनी धर्म प्रभावना हो रही है और कितने लोग पूजा-पाठ करने वाले मौजूद हैं? समाजों के बीच अनावश्यक मठ-मंदिर अधिकाँश रूप से आपसी विवादों के कारणों के साथ -साथ "धर्म प्रभावना नहीं बल्कि धन पावना" के श्रोत बनते जा रहे हैं | बन्धुओं ह्रदय में एक दर्द सा उमड़ता है जब धार्मिक जमीन-जायदाद के मामले पुलिस व कोर्ट-कचहरी की चौखटों को चूमतें हैं |
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