कमंडलों ने समाज में फैला डाले सैकड़ों मंडल- पी.एम.जैन आज कुछ कमंडलधारियों ने मंडलों के माध्यम से समाज में कुछ ऐसा आपसी विद्रोह फैला दिया है कि देश और समाज में शांति की बात तो छोड़िए घर-घर में अशांति का माहौल बना दिया है वह भी स्वयं की षड्यंत्री सिद्धी के लिए, वही अंग्रेजों वाली चाल "फूट डालो और राज करो"।समाज में कुछ अनुभवी वृद्ध और विद्वान हैं जिनको शास्त्रों-आगम का उच्चस्तरीय ज्ञान है उन्हें पता है कि एक सच्चे संत की क्या चर्या होनी चाहिए ऐसे हमारे विद्वान लोग उन्हीं संतों को अपनी समाज के बीच लाना चाहते हैं जो वास्तविक रूप से अपरिग्रह और समदृष्टि रखते हैं अमीर-गरीब में भेद नहीं रखते लेकिन जो अपरिग्रह का मात्र चोला पहने हुए हैं और परिग्रह के पुजारी हैं, मठ-मंदिर, नाम, शौहरत वाले ऐसे स्वयंभू उपाधियों के मदारियों ने अपनी षड़यंत्रकारी सिद्धि के लिए इन्हीं विद्वानों के घर में सेंध लगा दी। बाबा, पापा समाज की मुख्य कमेटी में पदाधिकारी हैं तो नाती-पोते पर हाथ फेरकर मंडल में महामंत्री-मंत्री बना दिया अब बाबा नहीं बुलायेंगे तो मंडल की मंडली के नाती- पोते तो इन षड़यंत्रकारी मदारियों को बुला ही लेंगे जोकि आज समाज में आपसी कलह का कारण बना हुआ है।आज किसी एक काॅलोनी में सिर्फ मंदिरों की गिनती करके पता लगाया जा सकता है कि समाज के लोग कितने हिस्सों में बिखरे हुए हैं।कहने का तात्पर्य है कि इन्हीं षड़यंत्रकारी मदारियों ने इस बिखराव का भरपूर फायदा उठाते हुए विद्वानों के घर व समाज के अनभिज्ञ नवयुवकों को नाम, पद-प्रतिष्ठा, फोटो के नाम पर बहला-फुसला कर सैकड़ों मंडलों के निर्माण कर डाले और फिजूलखर्ची को बढ़ावा दे रहे हैं, अब ऐसे मदारियों को समाज के अनुभवी लोग अपनी समाज के बीच बुलाना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं अब तो मदारियों की मंडल-मंडली जिन्दाबाद है जिनकी छत्रछाया में पल कर आगम विरुद्ध चर्या चलाकर बड़ी चालाकी से धन संपत्ति बटोरने में जुटे हैं और मंडलों के माध्यम से समाज व घर-घर में घुसकर घर की आपसी शांति भंग कर रहे हैं। सावधान रहें कुछ तो राष्ट्रसंत की स्वयंभू उपाधियां लेकर भ्रमणशील होकर समाज की आंखों में धूल झोंक रहे हैं।*घर छोड़ा चोला पहना आत्मकल्याण के लिए, आत्मकल्याण के लिए *कोठरी छोड़ी और कोठियां* बना रहे हैं।समाज के कुछ चुनिंदा ठेकेदार भी अपनी-अपनी रोटियां सेंकने से बाज नहीं आ रहे हैं जोकि भोली-भाली जनता के बीच भोजन फ्री, बसों से आना-जाना फ्री करके भीड़ जुटाकर बोलियों के जरिए लाखों कमाते हुए जनता के बीच "षड्यंत्र का चाबुक" चला रहे हैं। हद तो यहाॅं तक पार हो चुकी है कि धर्म प्रभावना की आड़ में धन पावना का कार्यक्रम चल रहा है।ध्यान रहे- चंचला लक्ष्मी चंचला ही रहेगी वह ठेकेदारों के पास पहुॅंचकर मोक्षलक्ष्मी में नहीं बदल सकती, मोक्षलक्ष्मी तो त्याग-तपस्या और सुपात्रों के हितों में खर्च करने से ही प्राप्त हो सकती है न कि मदारियों के षड्यंत्र में फंसकर। -पारसमणि जैन ज्योतिष विचारक एवं एडिटर इन चीफ दिल्ली मो.9718544977

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