आज भी जिंदा है वैराग्य
आज पंचमकाल में कुछ विरले ही साधुसंत हैं जो समस्त संसार को पूर्ण वैराग्यता का परिचय देते हुए इस वसुन्धरा को आत्म स्वर्ग बनाकर मोक्षमार्ग पर स्वयं चलते हुऐ अनेकों साधुसंतों को मोक्षमार्ग पर चला रहे हैं और एक सत्यार्थ धर्म पताका फेहरा रहे हैं बाकी तो अधिकाँश रूप से जनता के बीच साधुभेष में ज्योतिषी या तांत्रिक बनकर गंडे-ताबीज आदि बेचकर साधुजाति एवं वैराग्य शब्द को धूमिल करने मे एक जुट होकर जुटे हुऐ हैं|
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