चिंतक की चिंता भगवान से क्या माँगू

भगवान से क्या माँगू एक विशाल मंदिर था, उसमें प्रतिष्ठापित प्रतिमा अत्यंत भव्य थी। एक महान चिन्तक और प्रतिमा के मध्य यूँ मौन वार्तालाप हुआ - चिन्तक ने प्रतिमा से कहा - " मंदिर में अकेली रहती हो क्या ?" प्रतिमा ने तुनक कर कहा - " अकेली कहाँ रहती हूँ ? दिन भर मांगने वालो की भीड़ जो लगी रहती है। ठाठ बाठ से पूजा आरती होती है।" चिन्तक ने कहा -" आपके द्वार पर परम भक्त आते होंगे। माँगने वाले क्यों आने लगे ? " प्रतिमा - " नहीं नहीं ! सभी मेरे परम भक्त नहीं ।ऊपर से भक्त दिखते हैं। अंतर में कामनाओं से भरे रहते हैं।" चिन्तक - " आपके पास भी कामनाएं लेकर आते हैं ! हद हो गयी ।" प्रतिमा - " हाँ हाँ ! इनकी कामनायें बड़ी विचित्र होती हैं। अधिकतर धन, पद, सत्ता, ख्याति, कोर्ट कचहरी या संतान से सम्बंधित होती है।ये मानते हैं, मेरी पूजा या मनौती से मन की सब कामनाएं सिद्ध होती हैं। मुझे पूजा या मनौती की चाह नहीं ।" चिन्तक - " फिर सबकी कामनाएं पूर्ण करती हैं क्या ? " प्रतिमा - " क्या बात करते हैं ? मेरा स्वयं का सृजन मनुष्य करता है। उसकी कामनाएं पूर्ण करूँ, ऐसी योग्यता कहाँ से लाऊँ ? जिनकी कामनाएं पूर्ण होने की हैं, वे पूर्ण होती हैं। जो कामनाएं पूर्ण होने की नहीं, वे पूर्ण नहीं होतीं। इसमें मेरा कोई हाथ नहीं।" चिन्तक - "तब तो लोगों को समझाना चाहिए - माँगा मत करो, मेरे में कामनाएं पूर्ण करने का सामर्थ्य नहीं ।समझाने में कुछ खतरा लगता है क्या ? " प्रतिमा - " खतरा इतना सा है- पूजा कम हो सकती है, किन्तु खास बात नहीं।मुझे पूजा की प्यास नहीं।हाँ! माँगने से लोगों को आत्म संतोष जो मिलता है, उसे छीनना उचित नहीं। इसलिए मैं चुप रहती हूँ। खैर मैंने अपनी गुप्त बात प्रकट की, इसे फैलाने में लाभ नहीं।" इतने में तथाकथित भक्त आने लगे। चिन्तक चुपके से विदा हुआ। मित्रों ! प्रभु व संतों से माँगना है तो सत्संग माँगना, उनका आचरण माँगना, उन जैसा परम जागरण माँगना, उन जैसा समाधि- मरण माँगना। भाग्य से जो मिलने ही वाला है, उसे क्या माँगना। अगर अपना पैसा बैंक के खाते में जमा है, तो काउंटर पर यदि अपना दुश्मन भी बैठा है, तो उसे देना ही पड़ेगा और यदि बैंक खाते में ( भाग्य में ) कुछ भी जमा नहीं है, तो काउंटर पर यदि अपना ही लड़का बैठा है, तो वह भी नहीं दे पायेगा। आत्म-विश्वास जागृत करें। पुण्य व भाग्य पर भरोसा करें। प्रतिमा के दर्शन, पूजन, प्रार्थना व भक्ति उसे प्रसन्न करने के लिए नहीं, अपितु अपनी आत्मा में वीतरागता के भाव उत्पन्न करने के लिए किये जाते हैं। Mrunal Dev\manjiri Gandhi

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