तंत्र मंत्र और मठ
तंत्र-मंत्र और जादूटोना की ताकत पर ही बन रहे हैं अनावश्यक मठ-मंदिर और धाम-पी.एम.जैन
आज अधिकाँश तौर पर साधुभेष में तंत्र-मंत्र, जादू टोना,ज्योतिष,गृह क्लेश,विवाह-शादी की ताकत पर ही बन रहे और चल रहे हैं अनावश्यक मठ-मंदिर और और धाम क्योंकि पंचमकाल अर्थात दुखमकाल है और इंसान दुखी है| इस दु:खम काल में दुकान दु:ख दूर करने की अधिक चलती हैं ना कि मोक्ष प्राप्ति की
विचार कीजिए कि संसार में कितने साधु-संन्यासी है जिनको वास्तविक वैराग्य प्राप्त हुआ है और कितने भक्तगण हैं जो साधु संन्यासियों से जन्म मरण से छुटकारा पाने के लिए आचरण धारण करते हैं या फिर तत्वज्ञान की चर्चा करते हैं |
आज बस यहीं कारण है कि कुछ घर त्यागी और धन त्यागियों अर्थात वैरागियों के अनावश्यक धाम इसी धाँधली के तहत बन रहे और चल रहे हैं| इस धाँधली में वैरागी के साथ अधिकाँश वह ही लोग अधिक संलग्न मिलेगें जिनकी भूतकालीन आर्थिक स्थिति कमजोर रही हो और तंत्र-मंत्र, जादूटोना या ज्योतिष के माध्यम से आर्थिक स्थिति सुधर कर अधकचरे धनाढ्यों की श्रेणी में आ गई हो|
आज के कुछ कलयुगी साधु भी जानते हैं कि कलयुग में मोक्ष प्राप्त तो होना नहीं है चलो उपरोक्त विषयों के माध्यम से उदरपूर्ति के साथ साथ नाम और दाम ही कमा लें लेकिन भौतिकवादिता में साधु व भक्तगण यह भूल जाता है कि वह एक सच्चे मार्ग अर्थात मोक्षमार्ग को तो दूषित भी कर ही रहा है | ऐसे साधु व भक्तगणें का उद्धार कलयुग क्या सतयुग में भी सम्भव नहीं हो सकता है जो दिन- रात तंत्र-मंत्र, जादूटोना इत्यादि के माध्यम से स्व-पर के संसार वृद्धि में ही संलग्न हैं|
किसी ने सत्य ही कहा है -
षड़यंत्री गुरू और लालची चेला ,नरकन मैऊँ होये ठैलम ठैला | तो फिर पुऩ: विचारिऐ- कि दु:खमकाल में यह हालात हैं तो फिर दु:खम दु:खा काल में क्या हाल होगा|
कलयुग कितना भी प्रभावी हो लेकिन आज भी दृष्टि दौड़ाकर देखने पर ज्ञात होता है कि मेरे भरत के भारत देश में आज भी कुछ विरले और पुण्यात्मा साधु महात्मा विराजमान हैं जो मोक्षमार्ग की नींव को हिलने तक नहीं देते हैं, जिनके आशीर्वाद में इतनी जान है कि उन्हें किसी जादूटोना या ज्योतिष विद्या का सहारा तक नहीं लेना पड़ता है | ऐसे पुण्यात्माओं के चरण कमलों में, मै बारम्बार नमन करता हूँ |
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