मुनि निन्दा नहीं अवगुण निन्दा-पी. एम. जैन
मुनि निन्दा नहीं अवगुण निन्दा -: पी.एम.जैन
जैनधर्म में व्यक्ति विशेष की पूजन इत्यादि नही है व्यक्ति विशेष के गुणों अर्थात आचरण की पूजा की जाती है ना कि अवगुणों की पूजन इत्यादि की जाती है | जैनधर्म अगर अवगुणों की पूजन इत्यादि पर टिका होता तो संसार में अनेकों अवगुणधारी भ्रमणशील हैं| भगवान महावीर स्वामी ने मुनि और अमुनि की बहुत सुन्दर व्याख्या दो शब्दों में ही कर दी थी मैने सुना है उन्होंने कहा था कि " जो सुप्ता वह अमुनि और जो असुप्ता वह मुनि अर्थात जो जागते हुए भी सो रहा है वह अमुनि और जो सोते हुए भी जाग रहा है वह मुनि"| जैनधर्म के महामंत्र णमोकार में पाँचों परमेष्ठियों में कहीं भी किसी व्यक्ति विशेष का नामों निशान तक नहीं है महामंत्र में मात्र पदों का उल्लेख है और उन अलग-अलग पाँचों पदों के विशेष-अतिविशेष एवं महत्वपूर्ण गुण हैं उन गुणों का जैनधर्म के अनुयायी गुणगान एवं पूजन पाठ करते हैं | आज भी जो व्यक्ति पंचपरिमेष्ठी भगवंतों के गुणों को धारण करके चलता है वह आज के पंचमकाल में भी लोक पूज्य हो जाता है और नाम तो मात्र व्यवहार रूप है जो इस लोक तक ही सीमित रह जाता है परलोक में तो सिर्फ आचरण रूपी पुँज आचारण रूपी पुँजों में विलय हो जाता है |
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