चतुर्मास सीजन 2018
सत्य के मंच पर असत्य का ढिंढोरा चतुर्मास सीजन 2018
"भैंस के कटरे को गाय का बछड़ा नहीं बना सकते" -पी.एम.जैन (ज्योतिष विचारक) दिल्ली
नई दिल्ली -:हर बर्ष की भाँति चतुर्मास सीजन 2018 आया है धर्म प्रभावना की आड़ में अब कुछ धार्मिक मंचों पर कलश स्थापना के नाम पर धन पावना के लिए अमुक-अमुक कार्यक्रम पूर्व से ही संजोय कर रखे गये होगें ! जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से मंच संचालक, संगीतकार और सोने- चाँदी व रत्नमयी कलशों का चयन किया गया होगा |
चतुर्मास सीजन जब आता है तब अधिकाँश देखने को मिलता है कि धर्मक्षेत्र के सत्यवादी- महाव्रती पूज्यवर के सान्निध्य में धर्म प्रभावना के वास्ते मंगल कलश स्थापना समाज द्वारा की जाती है जोकि निजी आस्था और परम्परागत उचित ही होगी लेकिन-
आज के दौर में कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए एक हरफनमौला मंच संचालक और एक संगीतकार की विशेष आवश्यक होती है ! जिनमें कुछ मायाचारी से परिपूर्ण मंच संचालकों की यह हालत है कि उन्हें अपनी फिक्स फीस के अतिरिक्त कलश की बोलियों में भी कमीशन खोरी करनी पड़ती है ! जिसकी एबज में मंच संचालक को झूठ की तर्ज पर चाँदी में 90/.मिलावटी गिलट और रंगे हुए साधारण पत्थर के कलशों को लाखों रूपयों में सोना--चाँदी व रत्नमयी कलश के रूप में चिल्ला -चिल्लाकर पब्लिक को भेड़ने पड़ते हैं| ऐसी मायाचारी से परिपूर्ण कार्यक्रमों में संगीतकार भी कुछ पतला नहीं पड़ता है उसे भी ऐसे भजन पब्लिक में सुनाने पड़ते हैं कि "मुर्दा भी सुनकर एक बार खड़ हो जाये और जिन्दा पर बची-कुची चंचला लक्ष्मी का दान करके पुनः सो जाये"| मंच संचालक और संगीतकार द्वारा पब्लिक को भाव विभोर करने वाले कुछ कृत हास्य प्रद भी होते हैं जैसे- धन को चंचला लक्ष्मी-चंचला लक्ष्मी इत्यादि बोल-बोलकर पब्लिक की जेब से धन निकलवाना और कार्यक्रम के बाद इसी चंचला लक्ष्मी का हिसाब-किताब करके स्वयं की जेब में ड़ालकर ले जाना "यह कैसी धार्मिकता" है जो मदारी वाले खेल को दर्शाती है कि कार्यक्रम खत्म तो उपदेश भी खत्म ! इसके अतिरिक्त आश्चर्य जब होता है जब कुछ संसार से विरक्त और परिग्रह के त्यागीव्रति भी बोली की रकम बढवानें में सहयोग प्रदान करते हुए देखे जाते हैं |
आज साधु समाज और श्रावक समाज को उपरोक्त मायाचारी के परिपेक्ष में विचार करना चाहिए कि यह कितना और कहाँ तक उचित है कि एक मंचासीन सत्यव्रत के धारी के सान्निध्य में धर्म के नाम पर बोलियों के माध्यम से गिलट और साधारण पत्थर के मंगल कलश 99 टंच शुद्ध चाँदी और रत्नमयी कलशों के नाम पर समाज पर थोपे जाते हैं ! जिनकी कुछ समय पश्चात सच्चाई मालूम पड़ने पर कलश प्राप्तकर्ता की धार्मिक आस्था आहत होती हैं| धर्म प्रभावना के नाम पर धर्म में धंधा खोजने वाली कुछ ऐसी मानव समाजें हैं जो "कुपोषण" जैसी बीमारी से पीड़ित नजर आती हैं | धर्म के नाम पर धन की लालसा रखने वाले अधिकारीगणों को भी विचार करना चाहिए कि जिन वस्तुओं की नींव ही धोखाधड़ी पर आधारित होगी वह चमत्कार से परिपूर्ण कैसे हो सकती हैं ? ऐसे मिथ्यात्व और मायाचारी से परिपूर्ण वास्तुओं को साधना युक्त करने के लिए उनमें प्राण फूँकते- फूँकते चतुर्मास के 4 माह क्या 400 युग भी बदल जायें लेकिन वह शक्तियुक्त कदापि नहीं हो सकती हैं| जैसे भैंस के बच्चें को कितने भी कीमती साबुन-शैम्पू से स्ऩान कराना लेकिन वह गाय का बच्चा नहीं हो सकता अर्थात भैंस के कटरे को गाय का बछड़ा नहीं बना सकते हैं|
बन्धुओं ध्यान रखना "धर्म के खेल धर्म से खेल" वाली समस्त वस्तुऐं अर्थात जनता को मात्र लुभाने वाली समस्त वस्तुऐं चतुर्मास के बाद जहाँ भी जिसके यहाँ भी स्थापित होगी वहाँ पर नकारात्मक ऊर्जा ही फैलायेंगी और उस स्थान पर निवास करने वालों में मिथ्यात्व और मायाचारी की बढ़ोत्तरी करेंगी|
आज सशक्त समाजों को धर्म के नाम होने वाली धाँधली को रोकना होगा जिसके अन्तर्गत सोने-चाँदी व रत्नमयी मंगल कलशों पर सान्निध्य प्रदाता,समाज और मंच संचालक का नाम भी अंकित होना चाहिए जिससे कलश की गुणवत्ता और अधिकारियों के प्रति आस्था की माप सम्भव हो सके |
मुख्य तात्पर्य यह है कि "मंगल कलश सोने-चाँदी या रत्नों का न हो कोई बात नहीं है लेकिन सत्य की कसौटी के लिए मंगल कलश चाहे पंचतत्व से निर्मित क्षण भंगुर मिट्टी का ही हो लेकिन सत्यवादी के सत्यमंच पर उसकी सत्यता तो होनी ही चाहिए" | जनता जनार्दन को भी अपनी विवेकता का परिचय देते हुए गम्भीरता पूर्वक विचार करना चाहिए कि कम से कम सत्य और सत्यवादी के धार्मिक मंच तो मायाचारी से मुक्त रहें जो कि जनता की आखिरी उम्मीद और आस्था के केन्द्र हैं | paras punj अंक जुलाई 2018
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