तांत्रिक नहीं धन की तंगी से तंग लोग हैं
तांत्रिक नहीं धन की तंगी से तंग लोग हैं -:पी.एम.जैन
आज के आधुनिक दौर में अनपढ़ लोग क्या पढ़े-लिखे लोग भी मदारी तांत्रिकों के चंगुल में फँसते नजर आते हैं | आज के मानव जाति का जन्म कर्मभूमि पर हुआ है जिसके लिए कर्म करना अत्यन्त आवश्यक है लेकिन आज का मानव तांत्रिकों के माध्यम से भोगभूमि के सुख भोगना चाहता है जोकि मुमकिन नहीं है | यह यथार्थ सत्य है कि अगर कर्मभूमि पर कोई भगवान या अवतार भी जन्म लेगा तो उसे भी कर्मभूमि के अंतर्गत कर्म करके ही स्वयं का पेट भरना पडेगा|
तांत्रिकों को प्रोत्साहन और अंधविश्वास फैलाने में मीडिया का सहयोग भी कुछ कम नहीं है | मानवता को भूलकर कुछ अखबारों का मूल उद्देश्य मात्र धन कमाना ही रह गया है जोकि निजी अखबारों के माध्यम से तांत्रिकों के अनगिनत विज्ञापन प्रकाशित करते हैं जिनमें नि:संतान को संतान प्राप्ति, सौतन से छुटकारा, कारोबार में उन्नति, मन चाहा प्यार और प्यार में इजाफा इत्यादि जैसी बकवासी बातें अंकित होती हैं जो नवयुवक पीढ़ी को भटकाती हैं | देश की सरकार को ऐसे गुमराह और भटकाने वाले विज्ञापनों पर रोक लगानी चाहिए |
देश की जनता विचार करे कि रावण से बड़ा तांत्रिक इस भूमि पर पैदा नहीं हुआ और ना ही होगा लेकिन रावण ने युद्ध के दौरान भगवान राम पर तांत्रिक विद्याओं का प्रयोग तक नहीं किया क्योंकि वह जानता था कि तांत्रिक क्रियाऐं धर्म विरूद्ध कार्य नहीं करती अगर धर्म विरूद्ध कार्य करती तो रावण को भगवान राम से युद्ध करने की जरूरत ही नहीं पड़ती |
बन्धुओं भगवान राम की तो बात छोड़िऐं माता सीता जी के हरण के लिए वह लक्ष्मण जी द्वारा खींची गई रेखा में प्रवेश तक नहीं कर सका था| माता सीता के हरण के लिए रावण ने साधुभेष धारण करके मात्र छल-कपट ही किया था | उसी भाँति आज के दौर में कुछ साधु महात्मा साधुभेष में धर्म के नाम पर, तंत्र के नाम पर,जादू-टोना, नजर-टोटका के नाम पर, अदृश्य शक्तियों के नाम पर देश की भोली जनता के साथ छल-कपट ही कर रहे हैं और हरण इंसानियत व धर्मिक बुनियाद का हो रहा है |
जनता निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार विमर्श करे-:
1: कलयुग में भी अगर सतयुग और द्वापर युग जैसी शक्तियाँ विद्यमान हैं तो कलयुग में "मोक्ष" सम्भव क्यों नहीं है?
2-: सतयुग व द्वापर युग में जो साधुसंत जंगलों में पेडो़ के नीचे,पहाडो़ं के ऊपर ,गुफाओं में, घास-फूँस की कुटी इत्यादि में साधनारत रहते थे वह आज कलयुग में उपरोक्त स्थानों पर साधनारत क्यों नहीं हैं ? क्योंकि उन ईमानदार साधुसंतों को पता है कि कलयुग में मोक्ष और चमत्कार सम्भव नहीं है |
3-: कलयुग में कोई भी विद्वान से विद्वान और तपस्वी से तपस्वी साधुसंत "आगम"क्यों नहीं लिख सकता है? क्योंकि कलयुग में मोक्ष नहीं मात्र मोक्षमार्ग है |
देश की जनता उपरोक्त 3 बिंदुओं से ही समझ सकती है कि जब कलयुग के "मानव शरीर" को उपरोक्त स्थानों पर भयंकर गर्मी, बरसात और सर्दी के प्राकृतिक प्रकोप को सहन करते हुए तपस्चार्या करने की शक्ति नहीं है तो फिर वह महाशक्ति से परिपूर्ण अदृश्य शक्तियों का स्वामी कैसे हो सकता है?
आज अधिकाँश लोग साधुभेष में या तांत्रिक बनकर हमारे महान पूर्वजों या शक्तिशाली पूज्वरों की तंत्र -मंत्र-यंत्र जैसी मात्र डुगडुगी बजाकर धन की तंगी को दूर करते हुए स्वयं की उदरपूर्ति करने में जुटे हैं |
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