आज के कुछ संन्यासी

संन्यासियों का घरों में ठहरने का राज क्या हो सकता  है?

पंचम काल का प्रभाव समझें या तुच्छ मानसिकता कि आज अधिकाँश तौर पर  देखने को मिल रहा है कि संसारी व्यक्ति के घरों में संसार से विरक्त संन्यासी ठहर रहे हैं जो कि आगमनुसार अनुचित है |
संन्यासियों के ठहरनें के लिए समाज में उच्चित व्यवस्था होते हुए भी कुछ संन्यासी (साधु-संत) संसारियों अर्थात गृहस्थों के साथ घरों में निवास करते हैं क्या वैरागी व्यक्ति अर्थात संन्यासी की वैराग्यता में कोई बड़ा राज बाकी रहा है जो वैराग्य में खल्ल या हलचल मचा रहा है |

"घरम में धरम नहीं हो सकता" ऐसा धार्मिक लोग कहते हैं धर्मिक क्रियाऐं को कार्यवान्वित करके संचित पापों से मुक्ति पाने के लिए ही व्यक्ति घर त्याग कर संन्यासी बनता है और धर्मिक साधना में परिग्रह -अपरिग्रह, 22 परिसह इत्यादि जैसे अन्य आचरणों का कठोरता से  पालन करता कराता है|  लेकिन आज कुछ संन्यासियों (वैरागियों) को घर त्यागना भरीपन की निशानी बनता दिखाई पड़ रहा है| ऐसे कुछ "घर डे़रा"संन्यासियों का "श्मशानी वैराग्यता" के पीछे कुछ राज अथवा कारण हो सकते हैं |
जैसे- निम्नलिखित 16 कारण दुक्ख निवारण-
1-क्या घर में ठहरने वाले संन्यासी ने संन्यास रूप में दान के नाम पर धन कमा कर गृहस्वामी का घर बनवाया था अगर नहीं तो गृहस्थी के साथ घरों में संन्यासी का निवास आखिर क्यों?
2- क्या संन्यासी और गृहस्थ की कोई व्यापारिक साँठ-गाँठ या कोई व्यापारिक पार्टनर सिप है?
3- क्या गृहस्थ  "घर डे़रा"संन्यासी बाबा का कर्जदार है?
4-क्या वैराग्य घर से हुआ था धन व व्यापार से नहीं ?
5- क्या वैरागी भेष में धन कमाने की प्रबल इच्छा रही  थी?
6- क्या वैरागी व्यक्ति को गृहस्थ अवस्था में सुख सुविधाओं का अभाव था?
7-क्या आत्म कल्याण की आड़ में  परिवार या सगे सम्बन्धियों को तरक्की देना ही मुख्य उद्देश्य था ?
8- क्या वैराग्य जल्दबाजी में प्रगट हुआ था या भावुकता वश प्रगट हुआ था ?
9- क्या श्मशानी वैराग्य प्रगट हुआ था जो श्मशान में  एक आम आदमी को भी प्रगट होता है?
13- क्या वैरागी व्यक्ति का संस्कार प्रदाता (गुरू) भी उरोक्त तथ्यों से पीड़ित रहा था?
14- क्या वैरागीपन का मुख्य उद्देश्य समाज में पद प्रतिष्ठा (इज्जत) पाना था या स्व-पर का कल्याण था?
15-क्या साधुभेष में ज्योतिषी, तांत्रिक या जड़ी-बूटी व्यापारी बनना था क्योंकि उरोक्त विभागों में जनता का संन्यासी भेष वालों पर अधिक भरोसा होता है आम व्यापारियों पर भरोसा नहीं होता है?
16-क्या संन्यासी भेष से गृहस्थ अवस्था के सिर पर चढ़े कर्जे को चुकाना मुख्य उद्देश्य रहा था ?

आज की काल प्रवृत्ति में एक अचम्भा महसूस हो रहा है कि उन व्यक्तियों को धन से वैराग्य अधिक हो रहा है जिनके जीवन में धन का सदैव अभाव रहा है |
ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार भी संन्यासियों अर्थात धर्मगुरुओं का गृहस्थों के घरों में निवास करना उचित नहीं है |
ज्योतिष शास्त्रों में भी ग्रह सम्बन्धित एक उल्लेख मिलता है कि "जन्म कुंडली में शनि जिस स्थान पर बैठा होता है  उस स्थान की तरक्क़ी करता है लेकिन उसकी अन्य स्थानों पर पड़ने वाली दृष्टि खतरना होती है! इसी प्रकार गुरू जिस स्थान पर बैठता है उस स्थान का नाश करता है लेकिन उसकी अन्य स्थानों पर पड़ने वाली दृष्टि शुभकारी होती है
|अगर हम धार्मिक और ज्योतिष का विश्लेषण करें तो निष्कर्ष निकलता है कि हमारे महान साधु-संतों ने किसी धार्मिक क्रियाओं से  प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति और किसी धार्मिक क्रियाओं से संस्कार प्रदत्त संन्यासी (गुरू) को संसारी गृहस्थों के घर में ठहराने का निर्देश नहीं दिया था -:पी. एम जैन

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